ज्योतिष और प्रारब्ध

हम प्रायः ही अपने आस पास के लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं की आखिर हमने कौन से अपराध किए थे जिसके वजह से यह दिन देखना पड़ रहा?? क्या एक अच्छे इंसान के साथ बुरा होना और बुरे को सब सुख मिलना सृष्टि के नियमानुसार ठीक है?? निश्चित ही नही! लेकिन इन कर्मों का लेखा जोखा ही अपने आप में इतना जटिल है की हम होेने वाली घटनाओं के पीछे छिपे कारण को जान ही नहीं पाते |
हमने शिकार पर निकले राजा दशरथ के द्वारा हिरण समझ श्रवण कुमार को तीर मारने की कथा सुनी हैं जिसमें दुखी माता पिता अपने संतान की मृत्यु पर राजा दशरथ को श्राप देते हैं l हमनें महाभारत में राजा पांडु के द्वारा हिरण के भ्रम में प्रणय-क्रिया में रत महर्षि किंदम और उनकी पत्नी पर बाण चला देने के बारे में भी पढ़ा है जिसके फलस्वरूप उन्हें श्राप मिला l इन दोनों ही घटनाओं में कर्म और उनके परिणाम हमारे सामने थे लेकिन कई बार हमारे कर्मों के परिणाम हमें इसी जन्म में न मिलकर हमें अगले जन्मों में प्राप्त होते हैं l इससे संबंधित एक प्रसंग हमें महाभारत में देखने को मिलता है l
महाभारत के युद्ध के पश्चात अपने सौ पुत्रों की मृत्यु से दु:खी धृतराष्ट्र ने श्री कृष्ण से पूछा की आखिर किन कर्मों के कारण उन्हें इतने भयंकर दुष्परिणाम का सामना करना पड़ा?? श्री कृष्ण ने प्रत्युत्तर में पूछा की क्या उन्हे अपने समस्त पूर्व मानवीय जन्मों में किये कर्म याद हैं ? धृतराष्ट्र बोले, "मुझे अपने चार पूर्व जन्मों के समस्त कर्म याद हैं और मैंने सदा विशुद्ध जीवन व्यतीत किया और कोई भी पाप नहीं किया ।”
श्री कृष्ण बोले, "अनंत पूर्व जन्मों में से केवल चार जन्म याद हैं ! आपने अपने अनंत पूर्व जन्मों में अनंत अच्छे व बुरे कर्म किये हैं । तो केवल चार जन्मों के कर्मों को दृष्टि में रखकर अनंत जन्मों के कर्मफल का निर्णय कैसे लिया जा सकता है ?" तब श्री कृष्ण उन्हें उनके पचास जन्म पूर्व किए गए एक अपराध का बोध कराते हैं जहां उन्होंने एक क्रूर शिकारी के रूप में एक जलता हुआ जाल पक्षियों को पकड़ने के लिए डाला जिसके फलस्वरूप सौ शावक पक्षी जल कर मर गए और उनके माता पिता जाल को काटने के प्रयास में अपनी आंखो को घायल कर बैठे l इस संचित कर्म के कारण उनका एक जीवन में अंधा होना और सौ पुत्रों को खोना निश्चित प्रारब्ध बना l
इसे सुनकर धृतराष्ट्र ने पूछा, "आखिर इस महापाप का फल उन्हे उसी जन्म में क्यों न मिल गया या फिर अगले जन्म में, इतने जन्मों की प्रतीक्षा क्यों करनी पड़ी??" श्री कृष्ण ने कहा - "तुम्हें अपने कर्मों का परिणाम इतने जन्मों के पश्चात ही मिलना था जिससे तुम तब तक पर्याप्त शुभ कर्मों को संचित कर एक राजा के रूप में जन्म लेकर, सौ पुत्रों के सुख का भोग कर सको और तब तुम अपने किए गए उस पाप कर्म का फल वास्तव में भोग सकोगे l"
शास्त्रों के अनुसार हमारे कर्मों को तीन श्रेणी में रखा जा सकता है -क्रियामाण कर्म
-संचित कर्म
-प्रारब्ध कर्म
क्रियामाण कर्म वे होते हैं जिन्हें हम दैनिक जीवन में करते और जिसके परिणाम हमें शीघ्र ही देखने को मिलते l संचित कर्म वे होते जो हमारे सूक्ष्म अंतःकरण में संगृहीत होते हैं और जिनका परिणाम हमें भविष्य में मिलता और प्रारब्ध कर्म वे होते जो हम भूतकाल के कर्मों के फलस्वरूप वर्तमान जीवन में लेकर आए हैं ।
पुनः समस्त संचित कर्मों में से सृष्टि अपनी योजनानुसार पाँच फल आने वाले मनुष्य जन्म में हमारे भोग के लिए सुनिश्चित करती है-
1. आयु
2. व्यवसाय
3. धन संपत्ति
4. परिवार
5. मृत्यु का समय
इनको ही भाग्य या प्रारब्ध कहा जाता जिन्हें बदलना हमारे हाथ में नहीl ज्योतिष शास्त्र इसी प्रारब्ध का अध्ययन करता है और उसके आधार पर ही भविष्य कथन करता है लेकिन मनुष्य शरीर में प्रत्येक जीव को स्व- विवेक से कर्म करने की स्वतंत्रता है, जिससे वह-
1.अपने भविष्य को बिगाड़ सकता है
2.अपने सुंदर भविष्य का निर्माण कर सकता है
3.अपने जीवन का परम चरम लक्ष्य प्राप्त कर सकता है
इन कर्मों का फल मिलता है अतः ये 'क्रियमाण' कर्म कहलाते हैं । कर्म ही श्रृष्टि का वह दैवीय नियम है जिसने सभी जीवों को नियंत्रित किया है l इस संसार की कोई भी घटना आकरण नही l आपके जीवन में हो रही प्रत्येक घटना का बीज आपके ही प्रारब्ध में छिपा है l विवेकी वही है जिसने हमारे शास्त्रों में लिखे प्रसंगों से उचित ज्ञान लिया और अपने भविष्य का निर्माण किया l
अतः ज्योतिष की सीमा को समझते हुए, केवल भाग्यवादी न बने l
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